Poetry

तमन्ना

हर तमन्ना उठती है
इश्क की ताबीर से
बह जाती है
वक्त की रुखसाई से
विषक्त हो जाती है
जमाने की रुसवाई से
तीर्व है जो
आवेग से भरी
छा जाए धुआ बन
हस्ती पर मेरी
गरजते है बादल तब
लाज-हया के बन्धन
टकराते है जब

“तमन्ना&rdquo पर एक विचार;

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