हर तमन्ना उठती है
इश्क की ताबीर से
बह जाती है
वक्त की रुखसाई से
विषक्त हो जाती है
जमाने की रुसवाई से
तीर्व है जो
आवेग से भरी
छा जाए धुआ बन
हस्ती पर मेरी
गरजते है बादल तब
लाज-हया के बन्धन
टकराते है जब
मै कोई कवि नहीं और ये सिर्फ़ कविता नहीं।
हर तमन्ना उठती है
इश्क की ताबीर से
बह जाती है
वक्त की रुखसाई से
विषक्त हो जाती है
जमाने की रुसवाई से
तीर्व है जो
आवेग से भरी
छा जाए धुआ बन
हस्ती पर मेरी
गरजते है बादल तब
लाज-हया के बन्धन
टकराते है जब
Wow
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